एक लड़का था जिसका नाम सुदर्शन था और उसे दौड़ने का बहुत शौक था वह बचपन से ही कई दौड़ प्रतियोगिता और  मैराथन में भी हिस्सा ले चुका था परंतु वह किसी भी किसी भी दौड़ को पूरा नही करता था

एक दिन उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये वह आज की यह दौड़ पूरी जरूर करेगा अब दौड़ शुरू हुई

सुदर्शन ने भी दौड़ना शुरू किया धीरे धीरे सारे धावक उससे बहुत आगे निकल रहे थे परंतु अब सुदर्शन थक गया था और वह रुक गया फिर उसने खुद से बोला अगर मैं दौड़ नही सकता तो  कम से कम चल तो सकता हु कोशिस तो कर सकता हूँ । उसने ऐसा ही किया, वह धीरे धीरे चलने लगा मगर वह आगे जरूर बढ़ रहा था अब वह बहुत ज्यादा थक  गया था और निराश हो गया था और अंत मे नीचे गिर पड़ा

उसने खुद को बोला, की वह कैसे भी करके आज दौड़ को पूरी जरूर करेगा वह जिद करके वापस उठा और लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने लगा और अंततः वह रेस पूरी कर गया

माना कि वह रेस हार चुका था, लेकिन आज उसका विश्वास चरम पर था क्योंकि आज से पहले सुदर्शन कभी भी दौड़ को पूरा ही नही कर पाया था

वह जमीन पर पड़ा हुआ था क्योंकि उसके पैरों की मांसपेशियों में बहुत खिंचाव हो चुका था लेकिन आज वह बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ था क्योंकि आज वह हार कर भी जीता था

 

सुदर्शन की कहानी से हमे यही सीखने को मिलता है कि अगर हम लगातार आगे बढ़ते रहे तो एक दिन हम हारकर भी जीत जाएंगे । जीतना जरूरी है परंतु उससे ज्यादा जरूरी है मेहनत करना और वो भी बिना रुके लगातार करना जो की सुदर्शन ने किया।  कई बार अधिकतर लोग कार्य को मध्य मे ही छोड़ देते है क्योंकि उन्हे कोई परिणाम नहीं मिलता, परंतु हर कार्य का कुछ तो परिणाम होता है। अगर आप अपने 100% कर्म से संतुस्त है इसका मतलब आपने अपने कर्म मे पूरा 100% दिया है तो मई कह सकता हु की उसका परिणाम भी सुखनुमा होगा।